इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी आपराधिक मुकदमे की चार्जशीट रद्द कर दिए जाने के आधार पर उसी मामले में घरेलू हिंसा कानून के तहत चल रहे मुकदमे को रद्द नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत की जाने वाली कार्रवाई दीवानी प्रकृति की होती है इसलिए आपराधिक मुकदमा रद्द होने के आधार पर इसे नहीं रद्द किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने एटा की सुषमा व अन्य की याचिका खारिज करते हुए दिया है।

याची के खिलाफ एटा के जलेसर थाने में मारपीट और दहेज उत्पीड़न का आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस मुकदमे में पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट दाखिल की।

याची ने चार्जशीट को याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद वह चार्जशीट रद्द कर दी। बाद में इन्हीं आरोपों के आधार पर याची व उसके परिवार वालों के विरुद्ध घरेलू हिंसा कानून के तहत भी मुकदमा दर्ज कराया गया इसलिए आपराधिक मुकदमा रद्द होने के आधार पर घरेलू हिंसा कानून का मामला भी रद्द किया जाए।

कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना। साथ ही कहा कि आपराधिक मामले की चार्जशीट रद्द होने के आधार पर घरेलू हिंसा कानून के तहत दर्ज मामला रद्द नहीं किया जा सकता है।

अमरदीप सोनकर केस में हाईकोर्ट पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत की जाने वाली कार्रवाई व्यावहारिक (सिविल) प्रकृति की होती है। साथ ही यह निर्विवाद है कि याची और विपक्षी एक ही मकान में रह रहे हैं

इसलिए घरेलू हिंसा के तहत दर्ज मामले को रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि याची चाहे तो घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी आपत्ति सक्षम अदालत में प्रस्तुत कर सकती है।

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