इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति पर तल्ख टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने कहा, सुस्त कार्य संस्कृति से जिला अदालतों के प्रति आम लोगों का भरोसा कमजोर हो रहा है। कोर्ट ने कहा, लोग न्याय की तलाश में थाना-पुलिस और थकने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे, लेकिन सक्षम न्यायालय की शरण में जाने से कतरा रहे हैं। यह स्थिति खतरनाक है।

यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कानपुर नगर की मायादेवी की जमीन पर कब्जा दिलाने की मांग वाली याचिका पोषणीयता के आधार पर खारिज कर दी। स्पष्ट किया, अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट का काम जमीन का कब्जा दिलाना नहीं है, ऐसे विवादों के निपटारे का काम सिविल कोर्ट का है। सक्षम न्यायालय की उपेक्षा करने वाले पक्षकार की भावना कितनी भी मजबूत क्यों न हो, वह राहत का हकदार नहीं हो सकता। यह अदालत की अवमानना भी है।

हालांकि यह भी सच्चाई है कि जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति ने लोगों के मन ने अदालतों के प्रति निराशा पैदा कर दी है। लोग चाहते हुए भी सक्षम अदालतों की शरण लेने से बच रहे हैं। यह हालात चिंताजनक होने के साथ विचारणीय भी है।

कोर्ट ने कहा, अक्सर देखा गया है कि एक पक्ष को राहत देने या राहत से इन्कार करने पर न्यायिक अधिकारियों को प्रशासनिक स्तर पर होने वाली शिकायतों का सामना करना पड़ता है। उन्हें यह डर भी सताता है कि कहीं उनका आदेश उच्च अदालत से पलट न दिया जाए। नतीजतन, न्यायाधीश के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना मुश्किल हो गया है।

खरीदी गई भूमि पर कब्जे की मांग
कानपुर नगर के मामले में माया देवी के पति पीएसी लखनऊ में आरक्षी हैं। 15 फरवरी 2021 को घाटमपुर तहसील के गुच्चुपुर गांव में उन्होंने वीर बहादुर सिंह से 0.7460 हेक्टेयर जमीन का पंजीकृत बैनामा करवाया। बाद में दाखिल खारिज भी करा लिया।

याची का कहना था कि 21 मई 2022 को जब वह अपनी जमीन का कब्जा लेने पहुंचीं तो भूमि विक्रेता ने कब्जा न देकर,गाली गलौज और फिर मारपीट भी की। उन्होंने FIR दर्ज कराते हुए न्याय पाने के लिए एसडीएम, डीएम और कमिश्नर के कार्यालय के चक्कर काटे। पति के कमांडेंट को भी पत्र लिखा, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। विवश होकर उन्होंने खरीदी गई जमीन पर पर कब्जा दिलाने और दोषियों के खिलाफ कारवाई की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुस्ती के लिए वकील भी जिम्मेदार

कोर्ट ने अदालतों की सुस्त कार्य प्रणाली के लिए वकीलों को भी जिम्मेदार ठहराया। कहा, जिला अदालत में आए दिन होने वाली हड़ताल और सीट पर बैठ कर तारीख पर तारीख लेने की संस्कृति भी मुकदमों के त्वरित निस्तारण में बाधक है। इससे लोग विवादों के त्वरित निस्तारण के लिए सक्षम जिला अदालतों का विकल्प खोजते-खोजते, अधिकारियों और पुलिस थानों के चक्कर काटते हैं। फिर थककर हाईकोर्ट का रुख कर लेते हैं।

Source Link

Picture Source :